हज़रत अली (رضي الله عنه) का जीवन | Hazrat Ali History in Hindi

हजरत अली इब्न अबी तालिब (رضي الله عنه) इस्लाम के चौथे खलीफा और पैगंबर मुहम्मद (صلى الله عليه وسلم) के एक प्रमुख साथी थे। उनका जन्म 599 ईस्वी में मक्का में हुआ था।
अली के पिता का नाम अबी तालिब और माता का नाम फातिमा बिन्त असद था। उनकी पत्नी फातिमा (رضي الله عنها) थीं, जो पैगंबर मुहम्मद (صلى الله عليه وسلم) की बेटी थीं।
अली ने इस्लाम की शुरुआती दिनों में इसे स्वीकार किया। वे सबसे पहले इस्लाम लाने वाले किशोर माने जाते हैं और पैगंबर ﷺ के प्रिय साथी रहे।
हज़रत उस्मान ग़नी (رضي الله عنه) की शहादत के बाद अली को इस्लाम का चौथा खलीफा नियुक्त किया गया। उनके शासनकाल में इस्लाम कई आंतरिक संघर्षों से गुज़रा, लेकिन उन्होंने न्याय, संयम और नेतृत्व की मिसाल कायम की।
661 ईस्वी में कूफा में एक विद्रोही द्वारा मस्जिद में हमला कर दिया गया जिसमें अली (رضي الله عنه) शहीद हो गए।
हज़रत अली (رضي الله عنه) को इस्लामी न्याय, बहादुरी और आध्यात्मिकता का प्रतीक माना जाता है। वह ज्ञान के द्वार और “शेर-ए-ख़ुदा” के नाम से प्रसिद्ध थे।
हदीस: नबी ﷺ ने अली (RA) के बारे में फ़रमाया:
"मैं ज्ञान का शहर हूँ और अली उसका दरवाज़ा है।" — (तIRMIZI, हदीस 3723)
"अली से सिर्फ़ मोमिन ही मोहब्बत करेगा और अली से सिर्फ़ मुनाफिक ही नफ़रत करेगा।" — (सही मुस्लिम, हदीस 78)
कुरआन: सूरह अल-इंसान (76:8-9) में अली (RA) और फातिमा (RA) की प्रशंसा करते हुए कहा गया: “वे अल्लाह की रज़ा के लिए गरीब, यतीम और बंदी को खाना खिलाते हैं, जबकि स्वयं उसे पसंद करते हैं।”
शहादत: नबी ﷺ ने फ़रमाया: "अली मेरे बाद हर मोमिन के लिए वही हैं जो मैं उनके लिए हूँ।" — (सही तिर्मिज़ी)
हज़रत अली (RA) को 'अशरह मुबश्शरा' में शामिल नहीं किया गया क्योंकि उनका जन्नत की बशारत अलग और अनेक बार हुई। वे 'शेर-ए-ख़ुदा' और 'बाब-उल-इल्म' के नाम से प्रसिद्ध थे।
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