मोहर्रम क्या है? | Muharram Tajiya का इतिहास | Ashura की हकीकत हिंदी में

मोहर्रम इस्लामी कैलेंडर का पहला महीना है, और यह एक पवित्र महीना माना जाता है। मोहर्रम का त्यौहार आमतौर पर मोहर्रम महीने की दसवीं तारीख को मनाया जाता है, जिसे आशूरा कहा जाता है।
मोहर्रम की तारीखें हर साल अलग-अलग होती हैं क्योंकि इस्लामी कैलेंडर एक चंद्र कैलेंडर है।
इस दौरान मुसलमान रोज़ा रखते हैं, इबादत करते हैं और कुरान की तिलावत में लगे रहते हैं। यह महीना खास होता है क्योंकि यह पैगंबर मुहम्मद ﷺ के नवासे हज़रत इमाम हुसैन (रज़ि.) की शहादत की याद दिलाता है।
मोहर्रम एक महत्वपूर्ण इस्लामी अवसर है, जो इंसाफ, सच्चाई और बलिदान के मूल्यों को याद दिलाता है।
680 ईस्वी में, इमाम हुसैन और उनके परिवार को कर्बला में उमय्यद खलीफा यज़ीद की सेना ने घेर लिया था। वे संख्या में कम थे लेकिन इंसाफ और हक़ की राह पर अडिग थे।
यज़ीद की सेना ने पानी तक बंद कर दिया, फिर भी इमाम हुसैन और उनके साथियों ने हार नहीं मानी और शहीद हो गए।
मोहर्रम ताज़िया इस्लाम धर्म का एक ऐतिहासिक और भावनात्मक पहलू है। यह कोई त्योहार नहीं बल्कि ग़म और सब्र का महीना है।
कई लोग नहीं जानते कि ताज़िया क्यों निकाला जाता है — इसका सीधा संबंध है कर्बला की शहादत से।
ताज़िया हज़रत हुसैन की याद में बनाए गए प्रतीकात्मक मकबरे होते हैं, जिन्हें आशूरा (10वीं मोहर्रम) पर जुलूस में निकाला जाता है।
यह उनकी बहादुरी, बलिदान और हक़ की गवाही का प्रतीक है।
नहीं, मोहर्रम इस्लामी त्योहार नहीं है। यह एक ग़म और सब्र का महीना है, जिसमें हम इमाम हुसैन की शहादत को याद करते हैं।
फिर भी कुछ लोग इसे पर्व की तरह मनाते हैं, जो शायद जानकारी की कमी के कारण होता है। मोहर्रम की 9वीं और 10वीं तारीख को विशेष रूप से याद किया जाता है।